गौरतलब है कि साल 2013 के आंकड़ों के आधार पर बनी पिछली रिपोर्ट में यह आंकड़ा 12 लाख 50 हजार का था.
संगठन के मतुबाकि इसमें सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि 5 से 29 साल की उम्र वाले लोग सबसे ज्यादा इसके शिकार हो रहे हैं.
यानि की जिन लोगों ने अपने जीवन की शुरूआत ही ठीक से नहीं करी है उन्हें इस तरह से मौत मिल रही है जो की हर देश के लिए काफी तकलीफदेह है.
संगठन के प्रमुख ट्रेडोस अधानोम ने एक बयान में कहा, “ये मौतें आवागमन के लिए चुकाए गए अस्वीकृत मूल्य वाली है.
वहीं शुक्रवार को इन आंकड़ों पर चिंता जताते हुए संगठन के अन्य लोगों ने कहा कि इसे रोकने के लिए विश्व के देशों को इस दिशा में सार्थक कार्रवाई करनी चाहिए.
हालांकी इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मौतों की संख्या में इजाफा होने के बाद भी लोगों और कारों की बढ़ती संख्या को देखते हुए मृत्युदर हाल के वर्षों में स्थिर बनी हुई है.
यानि की कुछ मध्यम और उच्च आय वाले देशों में सड़क सुरक्षा संबंधी प्रयास सफल हो रहे हैं.लेकिन दूसरी तरफ कम आय वाले देशों में इस तरह की दुर्घटनाओं से अपने नागरिकों को बचाने के लिए वहां की सरकारों ने कोई ठोस कदम नहीं किए है.
2016 मे एकत्र किए आकड़ों के मुताबिकहर 100 सड़क दुर्घटनाओं में 31 लोगों की मौत हुई. जबकि साल 2015 में ये आकड़ा 29.1 था.
साल 2016 में हुए सड़क दुर्घटना के मामले में उत्तर प्रदेश का पहला स्थान रहा था वहां 3818 लोगों ने विभिन्न जिलों के सड़क हादसों में अपनी जान गंवाई है. वहीं दूसरे नम्बर पर तमिलनाडु 1946 और तीसरे पर महाराष्ट्र 10135 है.
यहां आपके लिए जानना जरूरी है कि ये आकड़े आज से दो साल पहले के हैं यानि की वर्तमान समय में इसका बढने या कम होने के बराबर चांसेस हैं.